MANALI – यादों के झरोखों से एक अनोखा सफर जिसमे ज़िन्दगी और मौत आमने सामने थी

यादों के झरोखों से एक अनोखा सफर जिसमे ज़िन्दगी और मौत आमने सामने थी

यादें भी अजीबोगरीब होती हैं जो चाहे अनचाहे हमारे विचारों में आकर हमें झकझोर देती हैं कभी आँखों में आँसुओं के रूप में बहती हैं तो कभी होठों पर मुस्कान की तरह खिलती हैं।

22 साल बीत गए पर वो मंज़र आज भी दिल में एक अजीब सी हलचल पैदा कर देता है । बात 20 जून 1995 की है जब हम पति पत्नी अपने एक घनिष्ट मित्र दंपत्ति के साथ कुल्लू मनाली घूमने गए थे । हम दोनों के ही डेढ़ वर्ष का एक बेटा भी साथ था । ट्रैन से चंडीगढ़ तक का सफर हँसते

 

गाते एक दूसरे के किस्से सुनते सुनाते कब गुज़र गया पता ही नहीं चला । अगले दिन हमने चंडीगढ़ की सैर की । बहुत ही साफ़ सुथरा और व्यवस्थित शहर . रोज गार्डन , रॉक गार्डन बड़ी ही विशिष्ट ख़ूबसूरती लिए हुए थे ।

चंडीगढ़ से कुल्लुमनाली तक का सफर हमें बस से तय करना था , पूरी रात की जर्नी थी । हिलस्टेशन जाने का मेरे लिए वो पहला अवसर था। सो मन में उमंग और उतावलापन भी था । टिकट बुक होते ही हम फटाफट बस में सवार हो गए । दोनों ही साइड की पहली दो दो सीट्स हमें और मित्र परिवार को मिली थी . इस बात की बेहद ख़ुशी थी कि सामने से हम मौसम और नज़ारों का भरपूर आनंद ले पाएंगे । रात्रि 9 बजे बस चंडीगढ़ से कुल्लू के लिए रवाना हो गयी . बस में 3-4 परिवारों को छोड़कर सभी हनीमून कपल्स थे ।

2-3 घंटे चलने के बाद अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ बस रुक गयी पता चला कि साइड में खड़े हुए ट्रक से टक्कर हो गयी थी । ड्राइवर को शायद नींद आ रही थी । जब ड्राइवर ने बताया कि वह ३ दिन से लगातार दिन और रात बस चला रहा है , सभी यात्री घबरा गए और आगे किसी ढाबे पर कुछ घंटे आराम करने की सलाह दी । सभी यात्री ढाबे पर यहाँ वहां चहलकदमी करते , इधर उधर की बातें करते , खाते पीते समय गुज़ार रहे थे और ड्राइवर महाशय छक कर सो गए थे ।

बस यहीं से मन में अनजाने भय ने घर बनाना शुरू कर दिया था . आपस में हमनें विचार विमर्श किया कि सुबह तक यहीं इंतज़ार करके अगली बस से ही आगे बढ़ेंगे । 2-3 घंटे सोने
के बाद ड्राइवर पुनः आगे के लिए तैयार हो गया था । डरते सहमते एक दुसरे को देखते धीरे धीरे सभी यात्री अपनी जगह बैठने लगे । कुछ ही समय में हमें छोड़ सभी बस में बैठ चुके थे । मेरी और मित्र की पत्नी दोनों की सीधी आँख फड़के जा रही थी । मन में तमाम अन्धविश्वास जोर पकड़ रहे थे . फिर भी सभी तो बैठ गए हैं सोचकर हमनें भी हिम्मत जुटाई और भगवान् का नाम सिमरते हुए दोबारा अपनी अपनी सीट पर बैठ गए लेकिन अब मन में उत्साह कम घबराहट ज्यादा थी । जयकारे के साथ सफर दोबारा शुरू हो गया ।

कुछ दूर सीधा रास्ता तय करने के बाद घाटियां शुरू हो गयी । कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ . घुमावदार सकरा रास्ता , एक तरफ 1200 फ़ीट गहरी खाई तो दूसरी तरफ
ऊँची ऊँची चट्टानें । उन रास्तों पर ड्राइविंग हर एक के बस की बात नई थी । मेरी और मिसेस शर्मा की नज़र ड्राइवर पर लगातार टिकी हुई थी । मन में लगातार उलटे सीधे विचार भाग
दौड़ कर रहे थे । लग रहा था अपने नाम पते लिखकर जेबों में रख लिए जाएं । कहीं कोई दुर्घटना होती है तो कम से कम घरवालों तक खबर तो पहुँच जाएगी । रात के लगभग तीन बज
रहे थे पर हमारी नींद तो जैसे पंख लगाकर उड़ गयी थी और हम ड्राइवर की तरफ टकटकी लगाए बैठे थे । अचानक हम दोनों ही चिल्ला पड़े , “भैया मोड़ो , गाड़ी मोड़ो “।

ड्राइवर को पुनः झपकी लग गयी थी और बस बिना मुड़े खाई में जा रही थी । हमारी चीख से उसने धड़ाधड़ स्टीयरिंग घुमा दिया और बस चट्टानों से जा टकराई । ड्राइवर केबिन पूरा पिचक गया था और कांच टूट कर हमें घायल कर चुका था । बस की हालत देखकर लगता था कि ड्राइवर क्लीनर नहीं बचे होंगे पर वह तो न जाने कैसे भाग चुके थे ।

बेटे को मैंने गोद में जोर से भींच रखा था । अचानक मुँह में कुछ नमकीन सा स्वाद लगा , तब पता चला की मेरे सर में गहरी चोट लगी थी । थोड़ी देर में मेरा आसमानी कुरता लाल हो चुका था । बस का गेट भी ड्राइवर साइड से बंद था इसलिए कोई बाहर नहीं निकल पा रहा था । जैसे तैसे एक सहयात्री ने ड्राइवर केबिन को तोड़कर गेट खोला और सब नीचे उतर आये । संयोग से बस में एक डॉक्टर परिवार भी था . उन्होंने अपने पास रखा आइस वाटर मेरे सर पर डाला और बहते हुए खून को रोकने की कोशिश में कुछ सफल भी हुए । ठण्ड के मारे मेरी कुल्फी जम गयी थी । सबसे ज्यादा चोट मुझे ही लगी थी । दाहिने तरफ माथे से लेकर आँख के ऊपर तक गहरा घाव हो गया था । मिसेस शर्मा के राइट हैंड में फ्रैक्चर हो गया था और चेहरे पर कई जगह कांच लगने से घाव हो गए थे । दोनों के पतिदेव और बच्चे सुरक्षित थे पर हमें शायद आगे बैठने की ज्यादा सजा मिली थी । कुछ देर बाद पीछे से आने वाली बस ने हमें आगे बस्ती से खाली बस भेजने का वादा किया । विश्वास तो नहीं था पर आधे घंटे बाद एक खाली बस आयी । उसने सभी यात्रिओं को उनके सामान सहित सुरक्षित पास की बस्ती मंडी के अस्पताल तक पहुँचाया। शायद वह इंसान के रूप में ईश्वर का दूत ही होगा । मंडी में फर्स्ट ऐड लेने के बाद उसने हमें मनाली के मिशनरी हॉस्पिटल तक पहुँचाया जहाँ बहुत ही नेक डॉक्टर्स और नर्सों ने बड़े ही धैर्य और स्नेह के साथ सभी यात्रिओं को संभाला ।

 

माथे पर 10 टांके और बड़ी सी पट्टी के साथ हमनें मनाली घूमने का निश्चय किया । यहाँ तक आकर प्रकृति के सौन्दर्य से अछूता रह जाना भी तो बेवकूफी होती । गरम और ठंडी जलधारा , बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं , पाइन ट्रीज , सफ़ेद रुई की तरह पास से गुज़रते बादल और पारम्परिक वेशभूषा में लुभाते सहृदय स्थानीय लोगों ने एक्सीडेंट की तकलीफ को काफी हद तक भुला दिया ।

किस्मत और मौसम भी अब हमारा साथ देते नज़र आ रहे थे क्योंकि कई दिनों से बंद रोहतांग पास उस दिन खुल गया था । जीवन की वह पहली बर्फीली यात्रा चेहरे पर एक अमिट निशान के साथ हमेशा याद रहेगी ।

One thought on “MANALI – यादों के झरोखों से एक अनोखा सफर जिसमे ज़िन्दगी और मौत आमने सामने थी

Leave a comment